रांची स्थित इराकी लाइब्रेरी व स्टडी सेंटर में एक श्रद्धांजलि कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, जिसमें उर्दू के प्रसिद्ध कवि अजफर जमील को याद किया गया। इस श्रद्धांजलि कार्यक्रम में कई प्रमुख व्यक्तियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कर अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए उनकेे साहित्यिक योगदान पर चर्चा किया।
इस अवसर पर शोक सभा की अध्यक्षता कर रहे माही एवं समझ के संयोजक इबरार अहमद ने कहा अजफर जमील ने उर्दू के कदीम शायरी रिवायात और उस दौर के शोरा-ए-कराम का गहरा मोताला (अध्ययन) किया था। तरक्की पसंद तहरीक से भी उनकी वाबस्तगी (संबंध) रही थी और प्रकाश फिकरी, सिद्दीक मुजीबी, वहाब दानिश, सरवर साजिद, अनवर ईरज जैसे जदीद शोरा-ए-कराम के भी हम असर रहे हैं। ये तमाम चीजें इनकी शायरी के कैन्वस को बहुत वसी (विस्तृत) करती है और साथ में इनके निजी ज़िन्दगी का तर्जुबा और समाज का बारीक़ बीनी से किया गया मुशाहिदा उन्हें एक बड़ा और मुनफरिद (अद्वितीय) शायर बनाता है। आदमी जब ज़िन्दगी की तल्खियाँ झेलता है, तनकीद के तीर-ओ-नस्तर का शिकार होता है तो ऐसे वक्त में माँ की ममता का आँचल दुखी लोगों का पनाहगाह होता है। तमाम अच्छाईयों और बुराईयों के बावजूद माँ अपने बच्चों को अपने ममता के साये में पनाह देती है और बेपनाह मोहब्बत लुटाती है। इसलिए अजफर जमील अपनी माँ से टूट कर मोहब्बत किया करते थे। जब उनकी माँ का इंतेकाल हुआ तो वे पूरी तरह से टूट चुके थे। माँ के मोहब्बत में लिखी गई उनकी नज़्में माँ और बेटे के अटूट रिश्ते को दर्शाता है। यह सिर्फ उर्दू शायरी में ही नहीं बल्कि दुनिया के किसी भी जु़बान के शायरी में एक अहम मक़ाम रखता है। इनकी वफात उर्दू अदब की दुनिया में एक बड़ा नुकसान है।
हसीब अख्तर जावेद (सेवानिवृत्त डीडीसी) ने कहा कि अजफर जमील एक उम्दा शायर थे और आम लोगों के दुख दर्द उनकी शायरी में देखने को मिलती है। उनकी शायरी आने वाली नस्लों के लिए मील का पत्थर साबित होगी।
डॉ. एम. एन. जुबैरी (एसोसिएट प्रोफेसर) रांची विश्वविद्यालय ने उनकी महानता की प्रशंसा की और कहा कि अजफर एक जदीद शायर ही नहीं बल्कि एक आम आदमी भी थे। उनकी शायराना शख्सियत इसी इम्तियाजी खुसुसियत के साथ उभरी है। जिसने इनके कलाम को आम इंसानी दुख-दर्द का मजमुआ बना दिया है और इसे ज्यादा हकीकी और पुरमाना इज़हार की शक्ल दे दी है। उन्होंने अजफर के साथ बिताये गये अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि अजफर जमील की वफात मेरे लिए ज़ाती नुकसान है।
अज़़फर जमील के मित्र सोहैल सईद ने अपने भावनात्मक शब्दों में उन्हें याद किया और उनके साथ बिताए गए समय की स्मृतियों को साझा किया। उन्होंने कहा अज़़फर एक ऐसे शायर थे जिनके अंदर इंसानियत के जज़बात कूट-कूट कर भरे हुए थे जबकि इस मानवीय वेदना एवं करूणा का आज के सामाजिक परिवेश अभाव है। अजफर इन जजबातों से माला-माल थे। उनकी शायरी में भी हम जगह-जगह देखेंगे। उनके एक शेर मुझे याद आता है कि ‘‘मतलब नहीं हिन्दू और मुसलमान से मेरा, एक दर्द का रिश्ता है हर इंसान से मेरा’’। इस समय कोई क्षेत्र सामाजिक और व्यवासियक भावना से खाली नहीं है। लोग सोहरत के दिवाने हैं, इसके लिए तरह-तरह का हरबा अपना रहे हैं। इस वातावरण मेंं हमारा अजफर एक से अछूते एकलौते शायर थे जो इस प्रदूषित वातावरण में खुद को और अपनी शायरी को बचाकर रखा। उनका एक और शेर मुलाहिजा फरमाईये जो उनकी गैरतमंदी को उजागर करती है कि ‘‘अजफर जमील तुम भी खड़े हो उसी तरह, काशा गदाई लेकर सफे इंतजार में’’।
प्रसिद्ध शिक्षाविद् अब्दुल्लाह कैफी ने उनके साहित्यिक योगदान की महत्वपूर्णता पर चर्चा की और उनके विचारों का सम्मान करते हुए कहा कि शायरी खेल नहीं, वहबी शायरी एक खास सलाहियत है जो ज़ाहिर है खुदादाद होती है। अजफर जमील से मुलाकात का शर्फ भी हासिल है और मजमुआ कलाम ‘‘शौक-ए-सफर’’ का इजरा भी खाकसार की निजामत में हुआ था। उनसे मिलकर और उनको पढ़कर मैं यह अंदाजा बखूबी लगा सकता हूँ कि शायरी उनकी कोशिश का नतीजा नहीं बल्कि उनके दिल की गहराई से निकले हुए जज़्बात का नतीजा है। उम्दा शायरी शिकस्ता दिल चाहती है। अजफर का दिल शिकस्तों से चूर था।
राँची विश्वविद्यालय के उर्दू के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉक्टर मंजर हुसैन ने शोक संदेश भेजते हुए कहा कि आज एक कलंदर सिफत और खिलवत पसंद फनकार अजफर जमील की याद में ताजियती नाशिस्त का इनेकाद किया गया। मुझे कहने दीजिए कि उर्दू शायरी में अजफर जमील की हैसियत एक कोहेनूर हीरे की मानिंद है जिसने अपने शायरी से उर्दू के शेरी सरमाया को मालामाल किया। उनकी शायरी में तफक्कुर भी है तखय्युल भी है और साथ-साथ अपने अहद की तर्जुमानी भी। उन्होंने जज्बात और एहसासात की भी शेर-ओ-शायरी की है और साथ-साथ अपने अहद की जिंदगी का जो कुरब है जो एखलाकी कदरों की पामाली है जो रिश्तो का इनहदाम है, सियासत की शोबदेबाजी है, मुनाफकत है इन तमाम मौजूआत को निहायत ही पुरअसर लबो लहजा में उन्होंने अपनी शायरी में समेटा है। अजफर जमील को वह मुकाम हासिल नहीं हो सका जिसके वे मुस्तहक थे। अल्लामा इकबाल फाउंडेशन के तमाम अराकीन काबिले मुबारकबाद हैं कि उन्होंने अजफर जमील के शायरी सरमाया को गोशा गुमनामी से बचा लिया और एक किताब आज से तकरीबन 4 साल पहले साया कर के तमाम शायकीन-ए-उर्दू की तरफ से कफ्फारा अदा कर दिया है लेकिन अफसोस की बात ये भी है कि अभी बहुत सारी गजलें बहुत सारी नज्में अजफर जमील की दूसरे लोगों के पास है जो इस इंतजार में हैं कि हालात खामोश हो, लोगों का जेहन अजफर जमील के तरफ से खत्म हो जाए तो वह अपने नाम से इनकी गजलों को साया कराएंगे। मैं अल्लामा इकबाल फाउंडेशन के अराकीन से दरख्वास्त करता हूं कि तमाम शेरी सरमाया को हासिल करें और सभी को मालूम है कि किन लोगों के पास अजफर जमील का शेरी सरमाया है। अजफर जमील की शायरी मुकम्मल तौर पर अगर साया हो गई तो मैं यकीन के साथ कह सकता हूं कि अजफर जमील को उर्दू शायरी में वही मकाम हासिल होगा जो दूसरे जदीद शोरा को हासिल हुआ है, चाहे वह इरफान सिद्दीकी हो, चाहे इफ्तिखार आरिफ हो चाहे असद बदायूनी हो इस सफ में झारखंड से किसी शायर का नुमाइंदगी की हैसियत से अगर शामिल किया जा सकता है तो यकीनन तन्हा अजफर जमील होंगे। अजफर जमील ने जज्बात और एहसासात की शेर व शायरी की है और उनका एक अपना रंग है और अपना लबो लहजा। गजल जिस तहजीब की मुताकाजी है गजल के जो अपने तकाजे और मुतालबात है इस कसौटी पर अजफर की गजलिया शायरी पूरे तौर पर उतरती है
अल्लामा इक़बाल फाउण्डेशन के सभी सक्रिय कार्यकत्र्ता असदुल्लाह, शोऐब रहमानी, मो. सलाहुद्दीन, शकील अख्तर, इनायतुल्लाह, मुजाहिद इस्लाम, शकील अहमद, नूर हसन लाल, नदीम अख्तर, मेराज हसन, अबरार हसन इत्यादि ने भी अजफर जमील जी के उत्कृष्ट कविता-साधना को याद किया और उनके काव्य दृष्टि को प्रशंसा की। एक स्वर में यह कहा कि उनके लिखित कविता को जो महानुभावोें ने कई दशकों से अपने पास रखा है उसे जल्द से जल्द फाउण्डेशन में जमा करा दें ताकि उनकी कार्यों को आगे बढ़ाया जा सके।
कार्यक्रम का संचालन सोहैल सईद ने की जबकि आने वाले तमाम अतिथियों का धन्यवाद मुजाहिद इस्लाम ने किया।