रांची: विश्व स्तनपान सप्ताह (1-7 अगस्त) पर यूनिसेफ ने आज विशेष स्तनपान के महत्व पर एक मीडिया ब्रीफिंग का आयोजन किया, जिसमें चिकित्सा क्षेत्र के प्रतिनिधियों के साथ-साथ स्वास्थ्य अधिकारियों, भागीदारों और समुदाय के सदस्यों के अलावा मीडियाकर्मियों ने हिस्सा लिया। इस वर्ष के विश्व स्तनपान सप्ताह का थीम माताओं के लिए एक सक्षम और अनुकूल वातावरण बनाने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है, ताकि वे अपने बच्चों को अस्पताल, घर व कार्यस्थलों पर बिना किसी समस्या के स्तनपान करा सके। जिन नवजात शिशुओं को जीवन के पहले घंटे में रतनपान कराया जाता है, उनके जीवित रहने की संभावना काफी अधिक होती है। जन्म के एक घंटे के अंदर बच्चे को पिलाया जाना वाला मां का गाढ़ा पीला दूध, जिसे कोलेस्ट्रम भी कहा जाता है, पोषक तत्वों और एंटीबॉडी से भरपूर होता है और वह बच्चे के लिए ‘पहला टीका’ के तौर पर काम करता है।
इस अवसर पर डॉ. राघवेंद्र नारायण शर्मा, उप निदेशक, नोडल अधिकारी, बाल स्वास्थ्य झारखंड, डॉ. आशा किरण, पीएसएम रिम्स आस्था अलंग, कम्यूनिकेशन, एडवोकेसी एवं पार्टनरशिप विशेषज्ञ, यूनिसेफ प्रीतीश नायक, पोषण विशेषज्ञ, यूनिसेफ डॉ बनेश माथुर, स्वास्थ्य अधिकारी, यूनिसेफ श्रीमती अकाई मिज, राज्य कार्यक्रम समन्वयक एवं एसपीएम एनएचएम. झारखंड, श्रीमती सुधादेवी एम. प्रिंसिपल, कॉन, रिम्स, रांची, डॉ. किरण त्रिवेदी, स्त्री रोग विभाग, रिम्स तथा अन्य स्वास्थ्य अधिकारी भी उपस्थित थे।डॉ. राघवेंद्र नारायण शर्मा, उप निदेशक, स्वास्थ्य सेवाएं सह नोडल अधिकारी, बाल स्वास्थ्य झारखंड ने कहा, ‘स्वास्थ्य सुविधाओं को अस्पतालों में स्तनपान नीति पर सख्ती से ध्यान केंद्रित करना चाहिए और नर्सों को इसके बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। यह भी महत्वपूर्ण है कि स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के साथ-साथ विज्ञापन कंपनियां, समुदाय के सदस्य तथा मीडिया इसे कार्यान्वित करने में अपनी भूमिका अदा करें। हमें सामान्य परिस्थितियों में शिशु दूध के विकल्प, फीडिंग बॉटल्स तथा शिशु दूध के उत्पादों को कभी भी बढ़ावा नहीं देना चाहिए।
यूनिसेफ की कम्यूनिकेशन, एडवोकेसी एवं पार्टनरशिप स्पेशलिस्ट, आस्था अलंग ने बैठक के उद्देश्य एवं लक्ष्य के बारे में बताते हुए कहा, “विश्व स्तनपान सप्ताह, दुनिया भर में मनाया जाने वाला एक वार्षिक कार्यक्रम है, जो कि सामूहिक प्रयासों के माध्यम से स्तनपान के प्रति जागरूकता, इसके प्रचार-प्रसार एवं प्रोत्साहन देने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। इस वर्ष के स्तनपान सप्ताह का थीम कामकाजी माता-पिता के लिए स्तनपान को प्रोत्साहन तथा जन्म के पहले घंटे के भीतर विशेष स्तनपान है, जो कि लोगों को स्तनपान और पालन-पोषण के संबंध में कामकाजी माता-पिता के दृष्टिकोण के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। इसके अलावा, यह स्तनपान के लिए कामकाजी महिलाओं को पेड लीव तथा कार्यस्थल पर स्तनपान के लिए सहयोग और समर्थन को बढ़ावा देने, स्तनपान को बढ़ावा देने के
करने जैसे कारकों पर फोकस करता है।
उन्होंने मीडिया की भूमिका एवं सहयोग पर जोर देते हुए कहा, “स्तनपान को लेकर एक सक्षम वातावरण बनाने के लिए सार्वजनिक धारणाओं, दृष्टिकोणों और प्रथाओं को आकार देने में मीडिया महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। मीडिया नीतिगत लावों की वकालत करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है, जो कि खामियों की ओर ध्यान आकर्षित करके तथा कार्यस्थलों पर बेहतर वातावरण का निर्माण करके सामाजिक मानदंडों को बढ़ावा दे सकते हैं।
बच्चों के लिए शुरुआती स्तनपान के लाभों को लेकर तकनीकी जानकारी प्रदान करते हुए यूनिसेफ के पोषण विशेषज्ञ, श्री प्रीतीश नायक ने कहा, “बच्चों, माताओं तथा समाज के लिए स्तनपान के लाभ व्यापक है। स्तनपान माँ से नवजात शिशु को सुरक्षात्मक एंटीबॉडी प्रदान करता है और शिशुओं को जीवन- घातक संक्रमणों से बचाता है। इसके अलावा, बच्चों में स्वस्थ मस्तिष्क के विकास को बढ़ाने तथा तीव्र एवं बचपनजनित बीमारियों को रोकने में भी सहायता करता है ।
उन्होंने आगे कहा, ‘स्तनपान एक स्मार्ट निवेश है। स्तनपान में निवेश से शिशु मृत्यु को रोकने में मदद मिलती है और यह शारीरिक विकास और आईक्यू को भी बढ़ावा देता है। यह सैकड़ों हजारों बच्चों के जीवन को बचा सकता है और बड़े आर्थिक लाभ भी प्रदान कर सकता है। यह प्राकृतिक है, जो कि पूरी तरह निःशुल्क है। पिछले दो दशकों में, स्तनपान दर बढ़ाने को लेकर महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, लेकिन यह अभी भी पर्याप्त नहीं है। झारखंड को कुपोषण मुक्त राज्य बनाने के लिए हमें कुछ अतिरिक्त प्रयास करने की जरूरत है। स्तनपान के लाभ के रूप में बीमारी और स्वास्थ्य देखभाल की लागत कम होगी और उत्पादकता में भी वृद्धि होगी।यूनिसेफ के स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. बनेश माथुर ने बच्चों के समग्र विकास को सुनिश्चित करने के लिए विशेष स्तनपान के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, कम से कम पहले छह महीने तक बच्चे को सिर्फ स्तनपान कराने से उनमें शिशु मृत्यु के प्रमुख दो प्रमुख कारणों जैसे की दस्त और निमोनिया जैसी बीमारियों को रोकने में मदद मिल सकती है। साथ ही संक्रमण, एलर्जी और अचानक शिशु मृत्यु सिंड्रोम के जोखिन को भी यह कम करता है। यह बच्चों के मानसिक विकास में भी सुधार करता है और माताओं को गर्भाशय तथा स्तन कैंसर से बचाता है। बच्चे का जन्म चाहे सामान्य प्रसव के माध्यम से हो या सिजेरियन, बच्चों को पहले छह महीने तक सिर्फ मां का दूध ही दिया जाना चाहिए।”
इस चर्चा में श्रीमती जिरेन एस. कंडुन्ना, अस्पताल प्रबंधक, सदर अस्पताल रांची, श्रीमती शेरिन ऐनी राजू कार्यकारी सहयोगी यूनिसेफ, श्रीमती डोरोथी किपोथी, जीएनएम प्रसूति वार्ड, सदर रांची, श्रीमती बबीता मंडल, एएनएम, प्रसूति वार्ड, सदर रांची और आशा कार्यकर्ताओं ने भी भाग लिया तथा स्वास्थ्य केंद्रों, अस्पतालों, कार्यस्थलों और समुदायों में प्रारंभिक स्तनपान शुरुआत के बारे में अपने अनुभव साझा किए।