अवसर मिलते नहीं; उन्हें बनाना पड़ता है: एनएन सिन्हा

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इस्पात उद्योग में जैव ईंधन के प्रभावी उपयोग पर अपनी तरह का पहला राष्ट्रीय सेमिनार “बीआईओएस 2023” आज सेल, आरडीसीआईएस, रांची के इस्पात भवन परिसर में देश विदेश के तमाम दिग्गजों के बीच शुरू हुआ

रांची :.वैश्विक जैव ईंधन अलायन्स (जीबीए) – इस जी20 की द्वितीय घोषणा ने जैवईंधन के वैज्ञानिकों एवं अनुसन्धान कर्ताओं को उत्साह से लबरेज़ कर दिया है| इस सेमीनार में सभी हितधारकों ने आक के चरों सत्रों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया| इस्पात और कृषि के शोधकर्ताओं, जैव ईंधन उत्पादकों, प्रौद्योगिकीविदों, शिक्षाविदों ने एक ही छत के नीचे तकनीकी विचार-विमर्श शुरू किया जो आने वाले दिनों में एक विपुल पर्यावरणीय यात्रा का आधार बन सकता है।
सेमीनार के आयोजन में भारत सरकार के इस्पात मंत्रालय का मार्गदर्शन सराहनीय था। इसका उद्घाटन भारत सरकार के सचिव (इस्पात) एनएन सिन्हा ने किया। उद्घाटन सत्र में सिन्हा के साथ मंच साझा करते हुए सेल के ए. भौमिक, निदेशक प्रभारी (बीएसएल और आरएसपी), बी.पी. सिंह निदेशक प्रभारी (डीएसपी एवं आईएसपी), ए.के. सिंह, निदेशक (टीपीआरएम), एन. बनर्जी, ईडी प्रभारी (आरडीसीआईएस और आईसीएआर-आईआईएबी के निदेशक डॉ. एस. रक्षित ने व्यक्तव्य दिए। कार्यक्रम की शुरूआत दीप प्रज्वलन एवं राष्ट्रगान से हुई।
उद्घाटन सत्र में अपने मुख्य भाषण में सिन्हा ने शुरुआत में इंजीनियरिंग बिरादरी को बधाई दी और प्रतिभागियों को यह कहकर प्रेरित किया कि इस पर्यावरणीय चुनौती को शुरू करने के लिए देश के सर्वोत्तम इंजिनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के जन्म दिवस की पूर्व संध्या से अधिक शुभ कोई अन्य दिन नहीं हो सकता था।. उन्होंने BIOS 2023 के आयोजकों की सराहना की क्योंकि यह कार्बन फुटप्रिंट की कठिन चुनौती से निपटने का अवसर पैदा कर रहा है। उन्होंने कहा कि अगर सही प्रौद्योगिकियों को अपनाया जाए तो वे हमें अपनी जड़ों की ओर वापस ले जाएंगी और झारखंड राज्य में हमारी जड़ें कई सहस्राब्दियों तक लौह निर्माण की अग्रदूत रही हैं, जैसे टांगीनाथ आदि में असुर और अन्य समुदाय बहुत पहले से ही ऐसी कठिन धातुकर्म प्रक्रियाओं में अग्रणी थे। उन्होंने टिप्पणी की कि ग्लासग्लो, स्कॉटलैंड में COP26 ने 2070 तक शुद्ध कार्बन तटस्थता में भारत की प्रतिबद्धता हमें और जिम्मेवार बनाती है। उन्होंने भारत में बायोमास उत्पादन की पर्याप्तता के बारे में बतलाया कि 770 मीट्रिक टन कृषि-बायोमास के कुल उत्पादन में से केवल 220 मीट्रिक टन जैव ईंधन के रूप में उद्योग में उपयोग के लिए उपलब्ध था। ब्लास्ट फर्नेस में पूरे 20% उपयोग के लिए, हमें आज 10MT जैव ईंधन की आवश्यकता है, जिसके लिए 0.1 मिलियन हेक्टेयर ज़मीन बांस की खेती की आवश्यकता है, जो कोई बड़ी मांग नहीं है। हालाँकि, परिवहन और संग्रहण के संदर्भ में कई चुनौतियां हैं| परिवहन के दौरान जैव ईंधन की अग्नि सुरक्षा तथा ब्लास्ट भट्टियों पर इसके प्रभाव पर भी ध्यान देने की ज़रुरत है। आने वाले दिनों में विकेंद्रीकरण ही कुंजी होगी, जो किसान स्तर पर अर्ध-प्रसंस्करण के लिए ग्रामीण नौकरियों को सुनिश्चित करेगी। इस्पात क्षेत्र को वैधानिक आदेश के लिए तैयार रहना चाहिए, जैसे बिजली संयंत्रों को अनिवार्य रूप से 5 से 10% बायोमास छर्रों का उपयोग करने के लिए कहा गया है। इसके अलावा इस्पात शोधकर्ताओं को जैव ईंधन के 20% चार्ज-मिक्स के संवर्द्धन पर ध्यान देना चाहिए, उपकरण निर्माता को भी इस चुनौती में स्टार्टअप के साथ शामिल होना चाहिए। तभी हम भावी पीढ़ी के लिए पृथ्वी को बेहतर स्थिति में छोड़ सकेंगे। उन्होंने इस्पात निर्माण में जैव ईंधन के लिए राष्ट्रीय मिशन के लिए एक खाका विकसित करने का सुझाव दिया, जो इस्पात की बड़ी डीकार्बोनाइजेशन पहल का हिस्सा हो सकता है और नियमित अंतराल/हर साल इसी तरह के आयोजनों को जारी रख सकता है। अतानु भौमिक ने वैज्ञानिक समुदाय से आग्रह किया कि बायोमास अब केवल शैक्षणिक अभ्यास नहीं है, बल्कि यह अब एक आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि 3पी यानी पीपल प्लांट एंड प्रॉफिट में सस्टेनेबिलिटी प्रमुख है।बी.पी. सिंह ने कहा कि जलवायु परिवर्तन आज सबसे अधिक चर्चित वैश्विक विषय है और 8% कार्बन उत्सर्जन के साथ हम 2030 तक 300MT स्टील उत्पादन करके पर्यावरण के क्षति नहीं कर सकते हैं।
श्री ए.के. सिंह ने सभी प्रतिनिधियों और प्रतिभागियों से इस सेमिनार का पूरी तरह से उपयोग करने का आह्वान किया, जिसका नेतृत्व इस्पात मंत्रालय ने सराहनीय ढंग से किया है। उन्होंने कहा कि ऐसी अग्रणी प्रौद्योगिकियों तक पहुंचने के लिए लीक से हटकर विचारों पर विचार-मंथन की आवश्यकता है।
एन. बनर्जी ने सभी गणमान्य व्यक्तियों, प्रतिनिधियों, प्रतिभागियों का स्वागत किया और बताया कि इस संगोष्ठी का आयोजन क्यों किया गया था।
अंत में डॉ. रक्षित ने धन्यवाद प्रस्ताव रखा| उन्होंने चावल की पराली के सदुपयोग की आवश्यकता पर भी जोर दिया, अन्यथा इसके जलने से पर्यावरण को काफी नुकसान होगा।
प्लेनरी सेशन की अध्यक्षता श्री सिन्हा ने की जिसमे आई.आई.एम, अहमदाबाद एवं कोंकण बांस अनुसन्धान केंद्र तथा निजी क्षेत्र के दिग्गज वक्ताओं ने अपने विचार रखे| तकनीकी सत्र १ एवं 2 की अध्यक्षता श्री ऐ.के सिंह एवं सरे बी.पी.सिंह ने की|

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