डीएसपीएमयू : साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के तत्वावधान में कुड़मालि भाषा सम्मेलन सफल रहा, वक्ताओं ने कहा

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रांची : साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के तत्वावधान में डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची में दो दिवसीय कुड़मालि भाषा सम्मेलन का आज दूसरा दिन के पहले सत्र का विधिवत् शुरूआत अतिथियों द्वारा परंपरागत ‘चमक’ पर द्वीप प्रज्वलित कर किया।
आज पहले दिन की भांति 4 अलग अलग विषय पर 4 सत्र में आलेख पाठ प्रस्तुत किये गये। आज के पहला सत्र की शुरूआत सुबह 10.30 से दोपहर 12.00 बजे तक चला। इस सत्र में तीन विद्वानों द्वारा आलेख पाठ प्रस्तुत किया गया। जिनमें पहला डाॅ. गीता कुमारी सिंह ने कुड़मालि के परंपरागत लोकगीत विषय पर आलेख प्रस्तुत किया। दूसरा कुड़मालि के सहायक प्राध्यापक कोल्हान विश्वविद्यालय चाईबासा से प्रो. सुबास चंद्र महतो ने कुड़मालि समाज आर संस्कृति में पाये जाने वाले गीतों में नातेदारी पर आलेख प्रस्तुत किया। तीसरा नंद किशोर महतो ने कुड़मालि गीतों पर प्रकृति चित्रण विषय पर में किस प्रकार कुड़मालि समाज आर संस्कृति प्रकृति के संरक्षक, संवधर्क के रूप में भूमिका निभा रही है। इसका बतलाया। इस सत्र के सत्राध्यक्ष डाॅ. राजाराम महतो ने प्रस्तुत कर बतलाया कि कुड़मालि एक अत्यंत समृद्ध भाषा है।
आज के दुसरा सत्र जो कि दोपहर 12 बजे से 1.30 के बीच चला। जो कि ‘कुड़मालि पारिवारिक गीत’ पर केंद्रित था। इसमें तीन विद्वानों में पहला मारवाड़ी काॅलेज के कुड़मालि भाषा के विभागाध्यक्ष डाॅ. वृंदावन महतो ने कुड़मालि समाज एवं संस्कृति में पाये जाने वाले खेल गीत पर चचार् करते हुए कहा कि कुड़मालि भाषा, संस्कृति में ‘ड़’ ध्वनि की प्रधानता है जो कि शरीर के विभिन्न अंग से लेकर कृषि कायर् के विभिन्न विधि विधान के वाचक शब्द में भी ड़ ध्वनि की ही प्रमुखता व्यवहारिक रूप से देखने को मिलता है। इसमें खेल गीतों के माध्यम से सभा को खेलमय बनाया। दूसरा डाॅ. मानसिंह महतो ने कुड़मालि गीतों में नारी सौर्ंदयीर्करण को गीतों के माध्यम से प्रस्तुत किया। तीसरा कथावाचक के रूप कुड़मालि के प्राध्यपिका नीलु कुमारी ने कुड़मालि साहित्य जगत में प्रसिद्ध महिला लेखिका पर प्रस्तुत कर बतलाये कि हमें महिलाओं को घर परिवार से निकल कर साहित्य जगत में आने की परंपरा बनाने की बात कही। इस सत्र के सत्राध्यक्ष एवं आयोजक कुड़मालि विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. परमेश्वरी प्रसाद ने कुड़मालि गीतों में नारी ससक्तिकरण पर जोर दिया और कहा कि यह कुड़मालि गीत नारी ससिक्तिकरण को लेकर पहले से ही काफी सजग एवं जागृत है।
6 वां सत्र दोपहर लंच के बाद 2.30 से 4 बजे के बीच हुआ। जो कि कुड़मालि के विविध विषयों पर केंद्रित था। इस सत्र में पहला विष्णुपद महतो ने कुड़मालि भाषा के विकास में संचार माध्यम का योगदान विषय पर आलेक प्रस्तुत कर कहा कि हममें अपने भाषा साहित्य के विकास के माध्यम के रूप में आधुनिक संचार माध्यम का सहारा लेना अति आवश्यक बतलाया।
छूसरा आलेख डाॅ. रितेश कुमार महतो ने प्रस्तुत किया जिन्होंने कुड़मालि समाज एवं संस्कृति प्रचलित लोक नृत्य जो कि छउ, नटुआ, झुमर, माछानि के रूप में देखने को मिलता है वह विलुप्ती की ओर जा रहा है इसको संजोने की बात कही। वहीं इस विश्वविद्यालय के कुड़मालि विभाग के सहायक प्राध्यापक डाॅ. निताई चंद्र महतो ने कुड़मालि भाषा में प्रकाशित अब तक पत्र-पत्रिकाओं का विवरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि कुड़मालि पत्रिका साहित्य जगत में अब तक 40 से ज्यादा पत्रिकाएं प्रकाशित होने की बात कही। इन्होंने जोर देकर कहा कि कुड़मालि भाषा को देश के 8 वीं सूची में लाने के लिए और भी कई रजिसटर् पत्रिका विभिन्न क्षेत्रों से निकालने की आवश्यकता है।
इस सत्र के सत्राध्यक्ष अशोक कुमार पुराण ने करते हुए कुड़मालि संस्कृति में पाये जाने वाले लोक नृत्य पर अपना आलेख पाठ प्रस्तुत किया।
आज के कायर्क्रम में मंच संचालन कुड़मालि विभाग के प्राध्यापक डाॅ. निताई चंद्र महतो ने कि या और धन्यवाद ज्ञापन साहित्य अकादमी की ओर आये एन. सुरेश बाबु ने करते हुए कहा कि मुझे कुड़मालि संस्कृति की ज्ञलक देखकर बहुत ही खुशी जाहिर किये।
इस कायर्क्रम झारखंड, बंगाल एवं ओडिशा से आये सैंकड़ो भाषा प्रेमी, साहित्य, प्रेमी समाज के बुद्धिजीवि वगर् के साथ आयोजक साहित्य अकादमी की ओर से उपसचिव, रिजनल सेंटर कोलकाता से आये विश्वजीत राय, छत्रपति शिवाजी महाराज विश्वविद्यालय मुंबई के कुलपति प्रो. केशरी लाल वमार् सभी सत्र में उपस्थित रहे। कायर्क्रम के अंतिम सत्र में साहित्य अकादमी के सदस्यों, प्रतिभागी एवं विभाग के छात्र-छात्राओं द्वारा नृत्य गीत प्रस्तुत कर पूरे हाॅल को संगीतमय बना दिया। इस अवसर पर कुड़मालि भाषा साहित्य से जुड़े दो पुस्तकों का लोकापर्ण हुआ। जिनमें रतन कुमार महतो के आलअ झलअमलअ और डाॅ. मानसिंग महतो के हिंदी साहित्य और कुरमाली के राश लीला का तुलनात्मक अध्ययन।
इस सम्मेलन को सफल बनाने के लिए विभाग विभागाध्यक्ष, मेकल्टी मेंबर सहीत शोधाथीर् अशोक कुमार पुराण, रुपेश कुशवाहा, सतेंद्र साहु, सुचित राय एवं विभाग के सैकड़ों छात्र-छात्राओं ने बढ़ चढ़ कर मदद किया।

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