मंदिरों की अर्थव्यवस्था और सनातन धर्म के लिए नया सवेरा बना आईटीसीएक्स 2025

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तिरुपति, आंध्र प्रदेश | गुरुवार, 20 फरवरी, 2025: भारत के मंदिर सिर्फ आस्था के केंद्र नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक शक्ति के प्रतीक भी हैं। ऐसे में, इनके प्रबंधन में सुधार के उद्देश्य से तिरुपति में आयोजित ‘इंटरनेशनल टेम्पल्स कन्वेंशन एंड एक्सपो’ (आईटीसीएक्स) 2025 इस विचार को साकार करता हुआ नजर आया। देशभर के 1500 से अधिक मंदिरों, धर्मगुरुओं और राजनीतिक नेताओं ने इस ऐतिहासिक आयोजन में शिरकत की, जहाँ मंदिरों की अर्थव्यवस्था, प्रबंधन और सनातन संस्कृति की समृद्धि पर मंथन हुआ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सराहना पत्र में लिखा, “आईटीसीएक्स मंदिरों की वैश्विक एकता का प्रतीक है। यह ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना को मजबूत करता है। 21वीं सदी ज्ञान-आधारित समाजों की सदी है और मंदिरों की धरोहर को डिजिटाइज़ व संरक्षित करने का यह प्रयास अत्यंत महत्वपूर्ण है।”

आईटीसीएक्स अध्यक्ष प्रसाद लाड ने कहा, “धर्मो रक्षति रक्षितः। यदि हम धर्म की रक्षा करेंगे, तो धर्म भी हमारी रक्षा करेगा। मंदिर सिर्फ पूजा स्थल नहीं, बल्कि राष्ट्र-निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।”

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा, “मंदिरों को सिर्फ धार्मिक स्थल के रूप में नहीं, बल्कि समानता और सामुदायिक एकता के केंद्र के रूप में भी विकसित किया जाना चाहिए। आईटीसीएक्स इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।”

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने कहा, “मंदिरों का दान पारदर्शिता के साथ जनता के कल्याण में लगना चाहिए। हमारा लक्ष्य हर जगह बालाजी मंदिरों की स्थापना करना है।”

तमिलनाडु बीजेपी अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने मंदिरों की स्वायत्तता पर जोर देते हुए कहा, “जब हमें अवसर मिलेगा, तो हम हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम (एचआर और सीई) को समाप्त कर मंदिरों को स्वतंत्र करेंगे।”

आईटीसीएक्स और टेम्पल कनेक्ट के संस्थापक गिरीश कुलकर्णी ने कहा, “आईटीसीएक्स सिर्फ एक आयोजन नहीं, बल्कि नवाचार और स्थिरता के जरिए मंदिर व्यवस्थाओं में बदलाव का संकल्प है। भारत वैश्विक भक्ति और आध्यात्मिक पर्यटन का केंद्र बन रहा है, ऐसे में मंदिरों का संगठित और सशक्त प्रबंधन जरूरी है, ताकि वे भविष्य के लिए तैयार रह सकें।”

यह आयोजन मंदिर प्रबंधन को आधुनिक बनाने, अर्थव्यवस्था से जोड़ने और सनातन संस्कृति के संरक्षण की दिशा में एक नई क्रांति की शुरुआत बन चुका है।

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