भोजन के साम्प्रदायिक बनने से पूर्व, सालों पुराने नियमों को बदलने की जरुरत,

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क्या भोजन भी सांप्रदायिक हो सकते हैं? क्या यह संभव है कि चिकन सिर्फ कोई एक धर्म ही खा सकता हो और दाल-रोटी केवल किसी एक धर्म के लिए ही बनती हो? मूलतः यह तो स्वाद की बात है कि किसकी जुबान को कौन सा स्वाद भाता है। लेकिन पिछले दिनों विस्तारा एयरलाइन्स के हिन्दू मील और मुस्लिम मील परोसे जाने के मामले ने तूल पकड़ लिया और ऐसे कई सवालों को जन्म दिया जो पहले समाज के जहन में नहीं थे। कुछ रोज पूर्व एक महिला पत्रकार द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर कंपनी को टैग करते हुए गंभीर आरोप लगाया गया कि ‘क्या आप लोग सब्जियों, चिकन और यात्रियों को फ्लाइट के दौरान सांप्रदायिक बनाने जा रहे हैं? हालांकि एयरलाइन्स का कोई आधिकारिक बयान आने से पहले ही सोशल मीडिया पर कई जानकारों ने आरोपों को निराधार बताया और इसका खंडन करते हुए, इसे जानकारी के आभाव में पूछा गया सवाल करार दिया। एक कंपनी के सीईओ ने बताया है कि हिंदू मील के लिए निर्धारित कोड एचएनएमएल है, लेकिन ये सिर्फ वेज खाना हो जरूरी नहीं है, ये नॉन-वेज आइटम भी हो सकता है, जो कि हलाल नहीं होगा, उसी प्रकार मुस्लिम मील के लिए निर्धारित कोड एमओएमएल के भी केवल नॉन-वेज होने की गारंटी नहीं है लेकिन उसका हलाल होना पक्का है। लेकिन इन सब के बीच मेरा बस एक ही सवाल है कि आखिर क्यों इस पूरी प्रक्रिया को इतना कॉम्प्लिकेटेड और आउटडेटेड बनाये रखा गया है। क्या हम फ़ूड कोड को केवल वेज या नॉन-वेज फ़ूड की कैटेगरी में विभाजित नहीं कर सकते? जो आम समझ और स्वीकृति के लिए तो आसान होगा ही साथ ही भोजन को कभी भविष्य में भी साम्प्रदायिक होने से बचाएगा।

भोजन को वेज और नॉन-वेज में विभाजित करने से न किसी की धार्मिक आस्था को भी ठेस पहुंचेगी, न ही जानकारी के आभाव में सवालों का जन्म होगा और न ही किसी अंतर्राष्ट्रीय कंपनी की जिम्मेदारी को सवालों के घेरे में लिया जाएगा। चूंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, जहाँ विविधता को सम्मान दिया जाता है और विभिन्न धर्म, भाषा व संस्कृतियों के लोग एक साथ रहते हैं। ऐसे में एयरलाइन्स के भोजन में हिन्दू-मुस्लिम कोड का इस्तेमाल करना केवल अनावश्यक ही नहीं, बल्कि समाज में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की आग को भड़काने जैसा भी प्रतीत होता है। मेरी जानकारी के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, ऐसे कोई मानक नहीं हैं जो किसी भी देश की एयरलाइन्स को धार्मिक आधार पर भोजन की पहचान करने के लिए मजबूर करते हों। इसलिए, इस तरह के सांप्रदायिक कोड का कोई तर्कसंगत औचित्य नहीं है।

जानकारी के लिए बताता चलूं कि एयरलाइन के लिए इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन की तरफ से खाने की चीजों के लिए खास कोड निर्धारित किये जाते हैं, और हिंदू मील या मुस्लिम मील जैसे नाम यही तय करते हैं। आईएटीए एयरलाइन और कैटरिंग सेवाओं के लिए ऐसे कोड तैयार करता है, और ग्राउंड स्टाफ उसका प्रबंधन करते हुए जस के तस उसे आगे बढ़ा देता है। एक खबर के मुताबिक ऐसी करीब दो दर्जन कैटेगरी बनाई गई हैं, ताकि एयरलाइन सेवाओं में एकरूपता बनाकर रखी जा सके। लेकिन हालिया वाकया इस बात की तरफ इशारा करता है कि यह समय एयरलाइन्स अथॉरिटी द्वारा अपनी नीतियों में बदलाव करने का है, और “वेज-नॉनवेज” के सरल और सर्वमान्य विकल्प को अपनाकर, विभाजन और भेदभाव की किसी भी भावना से दूरी बनाये रखने का है। ----------

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