आज के दौर में, जब दुनिया अक्सर ‘हम’ और ‘वे’ की दीवारों में बंटती नजर आती है, यह याद रखना अनिवार्य है कि मानवता का कोई भूगोल नहीं होता। किसी भी समाज की असली पहचान इस बात से होती है कि वह अपने बीच रहने वाले अल्पसंख्यकों और कमजोर तबकों के साथ कैसा व्यवहार करता है।
सरहदों से परे एक साझा दर्द
चाहे वह भारत हो, बांग्लादेश हो, या फिलिस्तीन की लहूलुहान जमीन—न्याय और सुरक्षा पर हर इंसान का बराबर हक है। फिलिस्तीन में मासूमों पर होती ज्यादती और वहां के नागरिकों का लंबा संघर्ष आज पूरी दुनिया के लिए इंसाफ की पुकार बन गया है।
अन्याय के खिलाफ खड़े होते समय हमें चयनात्मक (Selective) नहीं होना चाहिए। जुल्म चाहे ढाका में हो, गाजा में हो या दुनिया के किसी भी कोने में, उसका बिना शर्त विरोध करना ही सच्ची इंसानियत है।
बहुसंख्यक समाज की जिम्मेदारी
एक स्वस्थ लोकतंत्र और शांतिपूर्ण समाज की नींव तभी मजबूत होती है जब ‘बहुसंख्यक’ समाज अपनी शक्ति का उपयोग ‘अल्पसंख्यक’ समाज की ढाल के रूप में करता है। भारत की यह महान परंपरा रही है कि यहाँ का साझा समाज हमेशा एक-दूसरे के सुख-दुख में कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहा है। जब बहुसंख्यक वर्ग अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए आगे आता है, तो नफरत की दीवारें खुद-ब-खुद ढह जाती हैं।
अन्याय के विरुद्ध एक वैश्विक आवाज
जुल्म और नाइंसाफी का कोई धर्म या राष्ट्र नहीं होता। यदि बांग्लादेश में किसी अल्पसंख्यक परिवार को डर के साये में रहना पड़ता है, या फिलिस्तीन में किसी मां की गोद उजाड़ी जाती है, तो वह पूरी इंसानियत के खिलाफ अपराध है। हमें हर उस आवाज के साथ खड़ा होना होगा जो शांति और गरिमापूर्ण जीवन की मांग करती है।
“अन्याय कहीं भी हो, वह हर जगह के न्याय के लिए खतरा है।” —
हम इंसाफ की मांग करते हैं हम सबके साथ खड़े हैं।
चाहे वह बांग्लादेश का दीपू चंद्र दास।
बिहार का अतहर, कादिर, झारखंड का तबरेज अंसारी
चाहे वह फिलिस्तीन के मासूम बच्चे हो।
हमारा साझा संकल्प
शांति का पैगाम केवल शब्दों से नहीं, बल्कि हमारे व्यवहार और एकजुटता से जाता है। आइए, हम सब मिलकर एक ऐसे विश्व का निर्माण करें जहाँ:
सुरक्षा: फिलिस्तीन से लेकर बांग्लादेश तक, हर मासूम को अमन की नींद नसीब हो।
समानता: किसी भी व्यक्ति को उसकी पहचान, धर्म या भाषा के कारण निशाना न बनाया जाए।
भाईचारा: पड़ोसी धर्म सबसे बड़ा धर्म माना जाए, चाहे सरहद के इस पार हो या उस पार।
हम बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों के साथ हैं, हम फिलिस्तीन के मजलूमों के साथ हैं, और हम दुनिया भर में सताए गए हर उस इंसान के साथ हैं जिसकी कोई सुनने वाला नहीं। भारत की धरती से उठी ‘वसुधैव कुटुंबकम’ (पूरी दुनिया एक परिवार है) की गूँज ही आज वैश्विक संकटों का एकमात्र समाधान है।
मोहम्मद शाहिद अय्यूबी
अध्यक्ष
झारखंड मुस्लिम युवा मंच
9431108511
