भारत से इंडोनेशिया तक- वंदना ठाकुर की स्वर्णिम गर्जनावंदना ले आईं गोल्ड; इंडोनेशिया में बढ़ाया तिरंगे का मानजुनून और जज़्बे से जीता स्वर्ण

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नई दिल्ली, नवंबर 2025: किसी भी देश का गौरव सोने-चाँदी के मेडल या महज़ उसकी सफलता से ही नहीं मापा जाता, वह मापा जाता है देश की बेटियों के हौंसलों से। वह समय अब इतिहास के काले पन्नों में दर्ज है, जब बेटियों को बंदिशों की बेड़ियाँ पहनाकर घरों में कैद करके रखा जाता था। आज की भारत की बेटी सपनों को किसी और की नहीं, बल्कि अपनी मुट्ठी में संभाले चलती है और दुनिया को बताती है कि अब उसका सफर रुकावटों से नहीं, बल्कि उसके जज़्बे से लिखा जाता है। उसी नए भारत की एक बुलंद आवाज़ बनकर वंदना ठाकुर इंडोनेशिया से गोल्ड लेकर लौटी हैं, सिर्फ मेडल नहीं, बल्कि एक संदेश लेकर कि भारत की बेटियाँ जब ठान लेती हैं, तो इतिहास का रुख भी बदल देती हैं।

11 से 17 नवंबर, 2025 तक रिपब्लिक ऑफ इंडोनेशिया के बाटम शहर रियाउ प्रांत में आयोजित 16वीं वर्ल्ड बॉडीबिल्डिंग और फिजिक स्पोर्ट्स चैम्पियनशिप में वन्दना ठाकुर ने वह कर दिखाया, जिसकी कल्पना मात्र भी साहस माँगती है। दुनिया भर के दिग्गज बॉडीबिल्डर्स के बीच भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए, वंदना ने करोड़ों भारतीयों को गौरवान्वित कर दिया और अकेले ही पूरे राष्ट्र की उम्मीदों का भार अपने कँधों पर उठाकर उसे स्वर्णिम अंजाम तक पहुँचाया।

मंच पर उनकी जीत जितनी स्वर्णिम थी, मंच तक पहुँचने का उनका सफर उतना ही कठिन। लेकिन, वंदना एक ही बात पर अड़ी हुई थीं “रार नहीं ठानूँगी, हार नहीं मानूँगी।” सुबह की पहली किरण से पहले उठना, घंटों की कड़ी ट्रेनिंग, चोटों से लड़ना और फिर भी मुस्कुराते हुए आगे बढ़ना, वन्दना की यही कहानी उन्हें आज भारत का स्वर्णिम गर्व बनाती है। यह जीत सिर्फ उनके मजबूत शरीर की नहीं, बल्कि उनके अटूट मनोबल, आत्मअनुशासन और देश के प्रति निःस्वार्थ और बेबाक प्रेम की जीत है।

जीत को लेकर भावुक वंदना ठाकुर ने अपनी भावनाएँ व्यक्त करते हुए कहा, “जब मैं मंच पर गई, तो मेरे दिमाग में सिर्फ एक ही बात थी, तिरंगे के लिए जीतना। भारत का तिरंगा इस मंच पर लहराना है, यही मेरा लक्ष्य था और इसे सच करने के लिए जो भी करना पड़े, उसके लिए मैं तैयार थी। मैंने कई महीनों पहले से ही देश के लिए गोल्ड लाने की ज़िद के साथ तैयारी कर दी थी। मैं हर महिला से, हर बालिका से यही कहना चाहती हूँ कि कुछ भी हासिल करने की ललक यदि मन में हो, तो उसे पूरा करने की ज़िद पर अड़ जाओ, तुम्हें जीतने से कोई भी नहीं रोक सकता, खुद तुम भी नहीं। यह गोल्ड मैडल सिर्फ मेरा नहीं, बल्कि हर उस महिला का है, जिसे कभी बताया गया था कि वह कुछ नहीं कर सकती, लेकिन फिर भी उसने कर दिखाया। मैं चाहती हूँ कि यह मेडल भारत की हर एक बेटी के सपनों में सुनहरा रंग भरे और उन्हें सबसे आगे रहने की प्रेरणा दे।”

वंदना ठाकुर की यह ऐतिहासिक उपलब्धि इसलिए भी विशेष है, क्योंकि वे भारत की पहली महिला बॉडीबिल्डर बन गई हैं, जिन्होंने महिला बॉडीबिल्डिंग कैटेगरी में भारत के लिए गोल्ड जीतकर दुनिया भर में देश का नाम रोशन किया है। वंदना की इस उपलब्धि ने न सिर्फ भारत के खेल इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय जोड़ा है, बल्कि करोड़ों महिलाओं को यह भरोसा भी दिया है कि सपनों के साथ चलने वाले कदम कभी व्यर्थ नहीं जाते। ऐसे में, वंदना आज सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं, बल्कि नई पीढ़ी की प्रेरणा, उम्मीद और साहस की प्रतीक बन चुकी हैं। सिल्वर और गोल्ड की कहानी से परे, असल में वंदना जैसी महिलाएँ ही भारत का गोल्ड है।

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