रांची: हमारे समाज का ताना-बाना मर्द और औरत से मिलकर बना है. लेकिन एक तीसरा जेंडर भी हमारे समाज का हिस्सा है. इसकी पहचान कुछ ऐसी है जिसे सभ्य समाज में अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता. समाज के इस वर्ग को थर्ड जेंडर, किन्नर या हिजड़े के नाम से जाना जाता है. हिन्दुस्तान ही नहीं, पूरे विश्व में इनके दिल की बात और आवाज़ कोई सुनना नहीं चाहता क्योंकि पूरे समाज के लिए इन्हें एक बदनुमा दाग़ समझा जाता है. लोगों के लिए ये सिर्फ़ हंसी के पात्र हैं. रोटरी हॉल रांची रोटेरियन प्रविन राजगढ़िया और ललित के नेतृत्व में इनकी ज़िंदगी में झांकने की कोशिश की। है। किन्नर नर्गिस ने अपनी बात रखते हुए कहा कि तीसरे जेंडर का होने पर परिवार उन्हे अपने ख़ुद से दूर कर देते हैं, उन्हें किन्नर समाज पनाह देता है. इनके समाज के कुछ क़ायदे क़ानून होते हैं जिन पर अमल करना लाज़मी है. ये सभी परिवार की तरह एक गुरु की पनाह में रहते हैं. ये गुरु अपने साथ रहने वाले सभी किन्नरों को पनाह, सुरक्षा और उनकी हर ज़रूरत को पूरा करते हैं. सभी किन्नर जो भी कमा कर लाते हैं अपने गुरु को देते हैं. फिर गुरु हरेक को उसकी कमाई और ज़रूरत के मुताबिक़ पैसा देते हैं. बाक़ी बचे पैसे को सभी के मुस्तक़बिल के लिए रख लिया जाता है. गुरु ही इन किन्नरों का मां-बाप और सरपरस्त होता है. हरेक किन्नर को अपने गुरु की उम्मीदों पर खरा उतरना पड़ता है. जो ऐसा नहीं कर पाते उन्हें ग्रुप से बाहर कर दिया जाता है.
किन्नरों क़ायदे-क़ानून होते हैं. इन्हें तोड़ने वालों को बख़्शा नहीं जाता. हरेक किन्नर को एक तय रकम कमाना ज़रूरी होता है. जो ऐसा नहीं कर पाते, उनसे ख़िदमत के दूसरे काम लिए जाते हैं. जो लोग अपना लिंग बदलवाकर अपनी इच्छा से इनके ग्रुप में शामिल होना चाहते हैं, ये उनकी भी मदद करते हैं. हिजड़ों की एक तारीख़ रही है. लेकिन हर दौर में इन्हें हिकारत की नज़रों से देखा गया है. उन्होंने कहा कि किन्नर शादी-ब्याह में नाच-गाकर या किसी बच्चे की पैदाइश पर जश्न मनाकर ये अपनी कमाई करते हैं. माना जाता है कि जिस परिवार को किन्नर समाज दुआ देता है, वो खूब फलता-फूलता है. पुराने दौर में लोग इनके नाम का पैसा निकालते थे और इनकी झोली भर देते थे. आमतौर पर धारणा है कि किन्नरों का दिल नहीं दुखाना चाहिए, लेकिन इन्हें सम्मान जैसी चीज़ भी नसीब नहीं होती जोकि किसी भी इंसान का हक़ है.
हालांकि अब इनके कमाने का तरीक़ा भी बदल गया है. अपने ग्रुप से निकाल दिए जाने के बाद ये सड़कों पर, पार्कों, बसों, ट्रेनों, चौराहों, कहीं भी मांगते हुए नज़र आ जाते हैं. लोगों की नज़र में अब इनकी पहचान भिखारी की हो गई है.
रोटरी क्लब के प्रवीण राजगढ़िया ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रम करने का मकसद है कि कीनन को समझ में एक पहचान दिलाना उनकी समस्याओं को दूर करना उनके बच्चों की अच्छी शिक्षा देना उनको आर्थिक रूप से सफल करना ही इस तरह के कार्यक्रम करने का मकसद है।