कार्डियोमायोपैथी दिल की कमजोरी से जुड़ी एक बीमारी है, जिसमें हमारे दिल की मांसपेशियां कमजोर हो जाती है और जिसकी वजह से हमारा दिल शरीर में सही तरीके से ब्लड सर्कुलेशन नहीं कर पाता है।
पिछले 10 साल से महिला इस बीमारी से ग्रसित थी। मरीज़ के परिजनों ने बताया की कई जगह उपचार कराने के बाद भी उसकी बीमारी ठीक नहीं हो पा रही थी, और उसकी समस्या बढ़ती ही जा रही थी। 3 बार महिला काफ़ी गंभीर अवस्था में पहुँचकर दूसरे अस्पताल में भर्ती हुई थी और दो बार उसे वेंटीलेटर पर रखा गया था। कहीं पर तो महिला को हार्ट ट्रांस्प्लांट की भी सलाह दी गई थी।
लगभग 10 वर्षों से बीमारी से परेशान महिला जब राँची के पारस एचईसी अस्पताल आई तब जाँच के पश्चात डॉ कुंवर अभिषेक आर्य ने पाया कि महिला हृदय शरीर के अन्य हिस्सों में समुचित मात्रा में खून का संचार नहीं कर पा रहा था। जिसकी वजह से महिला को परेशानी हो रही थी। महिला पूरी तरह से सीधे लेट नहीं पाती थी और उनका सांस फूलने लगता था।
पारस एचईसी अस्पताल के चिकित्सक डॉ कुंवर अभिषेक आर्य ने मरीज़ को अस्पताल में सिर्फ़ एक दिन के लिए भर्ती कर इलाज किया। उसके बाद मरीज़ का बिना हार्ट ट्रांस्प्लांट किए उसे घर भेज दिया और डॉ कुंवर अभिषेक की देखरेख में लगभग 3 महीने की निरंतर चिकित्सा ( सिर्फ़ दवा से ) के बाद, वही महिला आज पूरी तरह स्वस्थ है और अपनी रोज़मर्रा के कामकाज बखूबी कर रही है। डॉ कुंवर अभिषेक आर्य का कहना है कि यह बीमारी वायरल इन्फेक्शन या जेनेटिक की वजह से भी हो सकती है। इस बीमारी में ब्लॉकेज नहीं होता है, लेकिन हार्ट ख़राब हो जाता है। ऐसी बीमारी में लगभग 3 महीने के इलाज के बाद ज़्यादातर मरीज़ पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं। मरीज़ को निरंतर अपना खून,ECG और ECHO जाँच कराते रहना चाहिए। चिकित्सक को भी मरीज़ से लगातार संपर्क में रहना चाहिए। उन्होंने बताया कि सही समय पर सही चिकित्सक से मिलने पर इस बीमारी से राहत मिल सकती है।
पारस एचईसी अस्पताल के डॉ कुंवर अभिषेक आर्य ने बताया कि डाइलेटेड कार्डियोमायोपैथी की स्थिति में हृदय का लेफ्ट वेंट्रिकल प्रभावित होता है।जिसकी वजह से दिल का लेफ्ट वेंट्रिकल आकार में बड़ा हो जाता है और मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। इसकी वजह से शरीर में खून के परिसंचरण में दिक्कत होती है। ये बीमारी किसी को भी हो सकती है और सबसे ज्यादा ये मध्यम आयु वर्ग के लोगों में देखी जाती है। इस बीमारी का ज्यादा खतरा 20 से 60 साल की उम्र वाले लोगों को होता है। इसमें जैसे-जैसे हृदय कक्ष (लेफ्ट वेंट्रिकल) फैलता है, हृदय की मांसपेशी सामान्य रूप से सिकुड़ नही पाती और रक्त को अच्छी तरह से पंप नहीं करती हैं। इस बीमारी की वजह से हार्ट फेलियर, अनियमित दिल की धड़कन, लय विकार, रक्त के थक्के आदि की समस्याएं हो सकती हैं।